कबीर
क्रांति दृष्टा कबीर (1398-1518) का जन्म बनारस में हुआ। उनका पालन पोषण एक जुलाहा दम्पति नीरू-नीमा ने किया । कबीर का समय भारतीय समाज का वह दौर था जब समाज में जातिपाति , छुआछूत, धर्म के नाम पर पाखंड एवं अंधविश्वास फैले हुए थे. राजसत्ता एवं धर्मसत्ता दोनोंं आम आदमी के खिलाफ षड्यंत्र कर रही थीं। पीड़ित मानवता अन्याय से त्रस्त थी । कबीर एवं उस समय के अन्य संतो ने अपनी पैनी निगाहों से समाज के हालात देखे तथा अपनी वाणी एवं कार्यो से निडर होकर जागरूकता का कार्य करके समाज को रचनात्मक दिशा दी । आज जब हम 21 वीं सदी में प्रवेश कर गये हैं, स्थितियां पूरी तरह नहीं बदली हैं किसी न किसी रूप में आज भी मौजूद हैं। कबीर के समय में समाज बदलाव का जो जनआंदोलन बना था, किन्हीं कारणों से वह धीमा पड़ गया। कबीर के विचारों एवं कार्यो को आधार मानकर आज के समय में हमारे पास वैचारिक परिवर्तन के जो भी सामाजिक,सांस्कृतिक वैचारिक साधन हैं उनसे एक समतामूलक समाज निर्माण के लिए जनआंदोलन बनाने की जरुरत है। कबीर जन विकास समूह इन्हीं कामोंं में सक्रिय है।
कबीर जनविकास समूह :
शुरूआत :
‘जस तिल मांही तैल है, अरु चकमक में आग
तेरा सॉंई तुझ में,जाग सके तो जाग’
-कबीर
15 वीं शताब्दी के संत कबीर के कार्यों एवं विचारों की चिंगारी चकमक में आग की भॉंति आज भी प्रकाशवान हैं । कबीर की समृद्ध परंपरा के अनेक रूप हैं , जो कहीं न कहीं से आम आदमी को ताकत देते हैं। कबीर की मूल वैचारिकी 600 वर्ष के अंतराल में धीमी पड़ रही थी। अनेक लोगों ने उसके मूलस्वरूप को अपने प्रयोजन के अनुसार परिवर्तित कर लिया था जो आज भी जारी हैं ।

कबीर अयोजन टगर
ऐसे समय में सुरेश पटेल एवं जागरूक युवाओं एवं ग्राम वासियों की पहल एवं सहभागिता से मई 1992 में जबलपुर जिले के छोटे से गॉव ‘टगर’ में कबीर पर केन्द्रित एक कार्यक्रम हुआ जोकि परम्परागत रूप से मनायी जाने वाली कबीर जयंतियों से इस मायने में अलग था कि इस आयोजन में कबीर वैचारिकी के मूल तत्वों को जमीनी स्तर पर सम्मलित किया गया था। जिसमें एक सभ्य और समरसी राष्ट्र बनाने की सम्भावनाओं की आहट थी। इसी आयोजन में पद्मश्री प्रहलाद सिंह टिपान्या के पहिले ऑडि़यो कैसेट ‘कबीरा सोई पीर हैं जो जाणे पर पीर’ की भूमिका बनी जिसने मालवा की लोक गायिकी को व्यापक पहचान दी। इसी दौर में ‘एकलव्य’ देवास के साथी जो शिक्षा एवं विकास में रूचि रखते थे । ‘कबीर भजन एवं विचार मंच’ के माध्यम से मालवा के कबीर गायकों से सार्थक संवाद कर थे ।

कबीर अयोजन टगर
यही वह समय था जब कबीर जन्म स्थली कबीर चौरामठ मुलगादी के आचार्य विवेक दास कबीर की 600 वीं जयंती अन्तराष्ट्रीय स्तर पर मनाने की तैयारी कर रहे थे । वे कबीर के कार्यो एवं विचारों को इतिहास एवं परम्परा के साथ आधुनिक एवं वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ाने के काम में जुटे थे । इन मिले जुले प्रयासों से अनेक साथी जुड़े काम धीरे-धीरे आगे बढ़ा। सभी का विचार था कि कबीर की मूल वैचारिकी की कार्य संस्कृति का निर्माण करने के लिए जो भी सामाजिक,सांस्कृतिक उपकरण है उन्हे मनुष्य के विकास से जोड़ा जाये तथा उसके भीतर मौजूद रचनात्मक सम्भावनाओं को विकसित किया जाये । जिसमें कबीर की मूल वैचारिकी एवं कार्यो से कबीर के सपनों का देश बनाया जा सके ।
हम वासी उस देश के, जहँ जाति वरण कुल नाहि ।
शब्द मिलाना हो रहा, देह मिलावा नॉंहि ।।

कबीर अयोजन टगर
चर्चाओ के कई दौर चले और 1998 में इन्दौर में अन्ना भाऊ साठे नगर में पन्नी बीनने वाले वाले बच्चों के ‘जुगाड़ स्कूल’ से कबीर जनविकास समूह के संस्थागत जमीनी कामों की मुख्यरूप से सुरेश पटेल,छोटेलाल भारती एवं अन्य साथियों के प्रयासो से शुरूआत हुई। इन कामों के दौरान 16 नवम्बर 2000 को कबीर जनविकास समूह का पंजीयन हुआ। तभी से वंचित समुदाय के बच्चों की शिक्षा, अंधश्रृद्धा निर्मूलन,अंर्तजातीय विवाह,छुआछूत से मुक्ति,विज्ञान सम्मत विचारधारा का प्रचार-प्रसार नये गायकों को प्रोत्साहन के साथ जन यात्राएँ ,प्रदर्शनी,नाटक,सफाई जनफेरियां वैचारिक गोष्ठियॉं, संवैधानिक मूल्यों पर कार्य आदि विविध विधाओं में अनेक व्यक्ति,संस्थायेंं जुड़कर लोक संरचनाओं,लोक भाषा,जनभागीदारी, लोकमाध्यम, लोकाश्रय से एक भेदभाव रहित कार्य संस्कृति का विकास करने में जुटे हैं ।
कबीर वैचारिकी का ताना-बाना बुना जा रहा है, जिससे समता मूलक समाज की स्थापना की व्यापक संभावनाऍं हैं । यदि सभी सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक औजारों से कबीर विचार को केन्द्र में रखकर कार्य किया जाए तो कबीर वैचारिकी इस देश की ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता को ऐसी दिशा देगी । जो दुनिया को कई प्रकार के संत्रासों से मुक्ति दिला कर एक व्यापक समरसी समाज की स्थापना कर सकेगी । यह यात्रा निरंतर जारी हैं,आप अपनी क्षमतानुसार इन कार्यों से जुडेंगे तो यह यात्रा सुगम होगी आपका स्वागत हैं।